पवित्र शस्त्रों मे कबीर (कविर्देव) जी के परमेश्वर होने का प्रमाण
इसी प्रकार कविर्देव (कबीर परमेश्वर) ने गुरलगानों को बुरा नहीं कहा है, न ही पवित्र कुरान शरीफ को गलत कहा है, केवल उन काजी व मुल्लाओं को लताड़ा है जो सर्व समाज को कुरान शरीफ के वास्तविक ज्ञान के विपरीत मनमानी साधना करवा रहे हैं।
जैसे पवित्र वेदों के चोलने वाला ब्रह्म कह रहा है कि पूर्ण परमात्मा कविर्देग के विषय में कोई जन्म लेकर अवतार रूप में आना मानते हैं, कोई कभी जन्म न लेने वाला निराकार कहते हैं। उसकी जानकारी तो (धीराणाम्) तत्वष्टा संत ही बताएगें। में (ब्रह्म) नहीं जानता (यजुर्वेद अध्याय 40 मंत्र 10)। इसी का प्रमाण पवित्र गीता अध्याय 4 श्लोक 34 तथा अध्याय 15 श्लोक 1 से 4 में भी है। जब तक यह तत्वदर्शी संग नहीं मिलेगा तब तब तक। तक जीव का कल्याण असम्भव है। यह अब आ गया है, इन तत्वदर्शी संत रामपाल जी को पहचानों।
"पवित्र कुरान शरीफ में प्रमाण"
इसी प्रकार पवित्र कुरान शरीफ के अध्याय सूरत फुर्कानी सं. 25, आयत 52, से 59 में कहा है कि वास्तव में (इबादही कबीरा) पूजा के योग्य कबीर अल्लाह है। यह कबीर वही पूर्ण परमात्मा है जिसने छः दिन में सष्टि रची तथा सातवें दिन तख्त पर जा विराजा, उसकी खबर किसी बाखबर से पूछ देखों ।
पवित्र कुरान शरीफ को बोलने वाला अल्लाह स्वयं किसी और कबीर नामक प्रभु की तरफ संकेत कर रहा है तथा कह रहा है कि पूर्ण परमात्मा कबीर के विषय में मैं भी नहीं जानता, उसके विषय में किसी तत्वदर्शी संत (बाखबर) से पूछो।
कविर्देव ने यही कहा था कि मैं स्वयं पूर्ण परमात्मा (अल्लाह कबीर / अकबिरु) हूँ। अपने स्वस्थ ज्ञान का संदेशवाहक रूप में मैं स्वयं ही आया हूँ, मुझे पहचानों । परन्तु ऐसे ही आचार्यों ने पहले भी परमेश्वर के वास्तविक ज्ञान को जनता तक नहीं जाने दिया। कहा करते थे कि कबीर तो अशिक्षित है, यह संस्कंत तो जानता ही नहीं, हम शिक्षित हैं। इस बात पर पहले तो भक्तजन गुमराह हो गए थे, परन्तु अब सर्व समाज शिक्षित है, इन मार्ग भ्रष्ट आचार्यों की दाल नहीं गल रही, न ही गलेगी।
5. हुजूरे अक्दस सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का इर्शाद है कि कोई बन्दा ऐसा नहीं कि 'लाइला-ह-इल्लल्लाहह' कहे और उसके लिए आसमानों के दरवाजें न खुल जायें, यहाँ तक कि यह कलिमा सीधा अर्श तक पहुँचता है, बशर्ते कि कबीरा गुनाहों से बचाता रहे।
फ - कितनी बड़ी फजीलत है और कुबूलियत की इन्तिहा है कि यह कलिमा बराहे रास्त अर्शे मुअल्ला तक पहुँचता है और यह अभी मालूम हो चुका है कि अगर कबीरा गुनाहों के साथ भी कहा जाये, तो नफा से उस वक्त भी खाली नहीं।
मुल्ला अली कारी रहा। फरमाते हैं कि कबाइर से बचने की शर्त कुबूल की जल्दी और आसमान के सब दरवाजे खुलने के एताबर से है, वरना सवाब और कूबूल से कबाइर (कबीर) के साथ भी खाली नहीं।
बाज उलेमा ने इस हदीस का यह मतलब बयान फरमाया है कि ऐसे शख्स के वास्ते मरने के बाद उस की रूह के एजाज में आसमान के सब दरवाजे खुल जायेंगे।
एक हदीस में आया है, दो कलिये ऐसे हैं कि उनमें से एक के लिए अर्श के नीचे कोई मुन्तहा नहीं। दूसरा आसमान और जमीन को (अपने नूर या अपने अज से) भर दे - एक 'लाइला-ह इल्लल्लाह' है, दूसरा 'अल्लाहु अकबर' (कबीर) है,
"पवित्र वेदों में प्रमाण"
कविर्देव अपने ज्ञान का दूत बनकर स्वयं ही आता है तथा अपना स्वस्थ ज्ञान ( वास्तविक तत्वज्ञान) स्वयं ही कराता है।
स्वयं कविर्देव (कबीर परमेश्वर) जी ने अपनी अमंतवाणी में कहा है
शब्द :- अविगत से चल आए, कोई मेरा भेद मर्म नहीं पाया। (टेक) न मेरा जन्म न गर्भ बसेरा, बालक हो दिखलाया। काशी नगर जल कमल पर डेरा, वहाँ जुलाहे ने पाया। मात-पिता मेरे कुछ नाहीं, ना मेरे घर दासी (पत्नी)। जुलहा का सुत आन कहाया, जगत करें मेरी हाँसी । पाँच तत्व का धड़ नहीं मेरा, जानुं ज्ञान अपारा। सत्य स्वरूपी (वास्तविक ) नाम साहेब (पूर्ण प्रभु) का सोई नाम हमारा ।। अधर द्वीप (ऊपर सत्यलोक में) गगन गुफा में तहां निज वस्तु सारा ज्योत स्वरूपी अलख निरंजन (ब्रह्म) भी धरता ध्यान हमारा ।। हाड़ चाम लहु ना मेरे कोई जाने सत्यनाम उपासी तारन तरन अभय पद दाता, मैं हूँ कबीर अविनाशी ।।
उपरोक्त शब्द में कबीर परमेश्वर कह रहे हैं कि न तो मेरी कोई पत्नी है, न ही मेरा पाँच तत्व (हाड-चाम, लहू अर्थात् नाड़ियों के जोड़-जुगाड़ वाली काया) का शरीर है, मैं स्वयंभू हूँ तथा काशी के लहरतारा नामक तालाब के जल में कमल के फूल पर स्वयं प्रकट होकर बालक रूप बनाया था। वहाँ से मुझे नीरू नामक जुलाहा उठा कर ले गया था जो वास्तविक नाम परमेश्वर का अर्थात् मेरा है ( वेदों में कविर्देव, गुरु ग्रन्थ साहेब में हक्का कबीर तथा कुरान शरीफ में अल्लाह कबीरन्) वही नाम मेरा है, मैं ऊपर ऋतधाम में रहता हूँ तथा आप का भगवान ज्योति निरंजन (ब्रह्म) भी मेरी पूजा करता है। इसी का प्रमाण सत्यार्थ प्रकाश सातवें समुल्लास (पं. 152-153, दीनानगर पंजाब से प्रकाशित ) में भी है। स्वामी दयानन्द जी ने यजुर्वेद अध्याय 13 मन्त्र 4 तथा ऋग्वेद मण्डल 10 सूक्त 49 मन्त्र 1 का अनुवाद किया है। जिसमें वेदों को बोलने वाला ब्रह्म कह रहा है (5= ऋग्वेद मं. 10 सु. 49 मं. 1 तथा 6= यजुर्वेद अध्याय 13 मं. 4 में) हे मनुष्यों! जो सष्ट के पूर्व सर्व की उत्पति करता तथा सर्व का स्वामी था, है, आगे भी रहेगा वही सर्व सष्टि को बनाकर धारण कर रहा है। उस सुख स्वरूप परमात्मा की भक्ति जैसे हम (ब्रह्म तथा अन्य देव भी उसी की साधना) करते हैं वैसे ही तुम लोग भी करो ।
अनुवाद - (अद्य ) आज अर्थात् वर्तमान में (दुरोणे) शरीर रूप महल में दुराचार पूर्वक (मनुषः) झूठी पूजा में लीन मननशील व्यक्तियों को (समिद्धः ) लगाई हुई आग अर्थात् शास्त्र विधि रहित वर्तमान पूजा जो हानिकारक होती है, अग्नि जला कर भस्म कर देती है ऐसे साधक का जीवन शास्त्रविरूद्ध साधना नष्ट कर देती है। उसके स्थान पर (देवान्) देवताओं के (देवः) देवता (जातवेदः) पूर्ण परमात्मा सतपुरुष की वास्तविक ( यज्) पूजा (असि) है (आ) दयालु (मित्रमह) जीव का वास्तविक साथी पूर्ण परमात्मा के (चिकित्वान्) स्वस्थ ज्ञान अर्थात् यथार्थ भक्ति को (दूत) संदेशवाहक रूप में (वह) लेकर आने वाला (च) तथा (प्रचेता) बोध कराने वाला (त्वम्) आप (कविर्देव अर्थात् कबीर परमेश्वर) कबीर (असि) है।
भावार्थ :- जिस समय भक्त समाज को शास्त्रविधि त्यागकर मनमाना आचरण (पूजा) कराया जा रहा होता है। उस समय कविर्देव (कबीर परमेश्वर) तत्व ज्ञान को प्रकट करता है।
प्रमाण 2. पवित्र सामवेद संख्या 1400 में
संख्या न. 359 सामवेद अध्याय न. 4 के खण्ड न. 25 का श्लोक न. 8 -
शब्दार्थ :- (युवा) पूर्ण समर्थ (कविर) कविर्देव अर्थात् कबीर परमेश्वर (अमितऔजा) विशाल शक्ति युक्त अर्थात् सर्व शक्तिमान है (अजायत) तेजपुंज का शरीर मायावयी बनाकर (धर्ता) प्रकट होकर अर्थात् अवतार धारकर (वजी) अपने सत्यशब्द व सत्यनाम रूपी शस्त्र से (पुराम्) काल - ब्रह्म के पाप रूपी बन्धन रूपी कीले को ( भिन्दुः) तोड़ने वाला, टुकड़े-टुकड़े करने वाला (इन्द्र) सर्व सुखदायक परमेश्वर (विश्वस्य) सर्व जगत के सर्व प्राणियों को (कर्मणः) मनसा वाचा कर्मणा अर्थात् पूर्ण निष्ठा के साथ अनन्य मन से धार्मिक कर्मों द्वारा सत्य भक्ति से (पुरुष्टुतः) स्तुति उपासना करने योग्य है।
[जैसे बच्चा तथा वृद्ध सर्व कार्य करने में समर्थ नहीं होते जवान व्यक्ति सर्व कार्य करने की क्षमता रखता है। ऐसे ही परब्रह्म ब्रह्म व त्रिलोकिय ब्रह्मा-विष्णु-शिव तथा अन्य देवी-देवताओं को बच्चे तथा वृद्ध समझो इसलिए कबीर परमेश्वर को युवा की उपमा वेद में दी है ]
भावार्थ :- जो कविर्देव (कबीर परमेश्वर) तत्वज्ञान लेकर संसार में आता है। वह सर्वशक्तिमान है तथा काल (ब्रह्म) के कर्म रूपी किले को तोड़ने वाला है वह सर्व सुखदाता है तथा सर्व के पुजा करने योग्य है।
संख्या नं . 1400 सामवेद उतार्थिक अध्याय नं. 12 खण्ड नं. 3 श्लोक नं. 5
अनुवाद:- (विचक्षण) चतुर व्यक्तियों ने (आवच्यस्व) अपने वचनों द्वारा पूर्णब्रह्म की पूजा को न बताकर आन उपासना का मार्ग दर्शन करके अमंत के स्थान पर (पूयमानः ) आन उपासना (जैसे भूत-प्रेत पूजा, पित्तर पूजा, तीनों गुणों (रजगुण ब्रह्मा, सतगुण विष्णु, तमगुण - शिव शंकर ) तथा ब्रह्म- काल तक की पूजा) रूपी मवाद को (चम्वो) आदर के साथ आचमन करा रहे गलत ज्ञान को (भद्रा ) परमसुखदायक (महान् कविर् ) पूर्ण परमात्मा कबीर (वस्त्रा) सशरीर साधारण वेशभूषा में "अर्थात् वस्त्र का अर्थ है वेशभूषा, संत भाषा में इसे चोला भी कहते हैं, चोला का अर्थ है शरीर यदि किसी संत का देहान्त हो जाता है तो कहते हैं कि चोला छोड़ गए" (समन्या) अपने सत्यलोक वाले शरीर के सदंश अन्य शरीर तेजपुंज का धारकर ( वसानः) आम व्यक्ति की तरह जीवन जी कर कुछ दिन संसार में रह कर (निवचनानि) अपनी शब्दावली आदि के माध्यम से सत्यज्ञान (शंसन) वर्णन करके (देव) पूर्ण परमात्मा के (वीतौ) छिपे हुए सगुण-निर्गुण ज्ञान को (जागविः) जाग्रत करते हैं।
भावार्थ :- शास्त्रविधि विरुद्ध साधना रूपी मवाद अर्थात् घातक साधना पर आधारित भक्त समाज को कविर्देव (कबीर परमेश्वर) तत्वज्ञान समझाने के लिए यहाँ संसार में प्रकट होता है। उस समय अपने तेजोमय शरीर पर अन्य शरीर रूपी वस्त्र ( हलके तेज का) पहन कर आता है। (क्योंकि परमेश्वर के वास्तविक तेजोमय शरीर को चर्म दृष्टि से नहीं देखा जा सकता ।) कुछ दिन आम व्यक्ति जैसा जीवन जीकर लीला करता है तथा परमेश्वर को (अपने को) पाने वाले ज्ञान को उजागर करता है।
अनुवाद;-पूर्ण परमात्मा (हर्य शिशुम् ) विलक्षण मनुष्य के बच्चे के रूप में (जज्ञानम् ) जान बूझ कर प्रकट होता है तथा अपने तत्वज्ञान को (तम्) उस समय (मंजन्ति) निर्मलता के साथ (शुम्भन्ति) उच्चारण करता है (वह्नि) प्रभु प्राप्ति की लगी विरह अग्नि वाले (मस्त) भक्त (गणन) समूह के लिए (काव्येना) कविताओं द्वारा कवित्व से (पवित्रम् अत्येति) अत्यधिक वाणी निर्मलता के साथ (कविर गीर्भि) कविर वाणी अर्थात् कबीर वाणी द्वारा (रमन) ऊंचे स्वर से सम्बोधन करके बोलता है, (कविर् सन्तु सोमः ) वह अमर पुरुष अर्थात् सतपुरुष ही संत अर्थात् ऋषि रूप में स्वयं कविर्देव ही होता है। परन्तु उस परमात्मा को न पहचान कर कवि कहने लग जाते हैं। परन्तु वह पूर्ण परमात्मा ही होता है। उसका वास्तविक नाम कविर्देव है ।
भावार्थ - ऋग्वेद मण्डल नं. 9 सुक्त नं. 96 मन्त्र 16में कहा है कि आओ पूर्ण परमात्मा के वास्तविक नाम को जाने इस मन्त्र 17 में उस परमात्मा का नाम व परिपूर्ण परिचय दिया है। वेद बोलने वाला ब्रह्म कह रहा है कि पूर्ण परमात्मा विलक्षण मनुष्य के बच्चे के रूप में प्रकट होकर कविर्देव अपने वास्तविक ज्ञानको अपनी कबीर बाणी के द्वारा निर्मल ज्ञान अपने हंसात्माओं अर्थात् पुण्यात्मा अनुयायियों को कविताओं, लोकोक्तियों के द्वारा सम्बोधन करके अर्थात् उच्चारण करके वर्णन करता है। इस तत्वज्ञान के अभाव से उस समय प्रकट परमात्मा को न पहचान कर केवल ऋषि व संत या कवि मान लेते हैं वह परमात्मा स्वयं भी कहता है कि मैं पूर्ण ब्रह्म हूँ परन्तु लोक वेद के आधार से परमात्मा को निराकार माने हुए प्रजाजन नहीं पहचानते जैसे गरीबदास जी महाराज ने काशी में प्रकट परमात्मा को पहचान कर उनकी महिमा कही तथा उस परमेश्वर द्वारा अपनी महिमा बताई थी उसका यथावत् वर्णन अपनी वाणी में किया
गरीब, जाति हमारी जगत गुरू, परमेश्वर है पंथ ।
दासगरीब लिख पड़े नाम निरंजन कंत ।।
गरीब, हम ही अलख अल्लाह है, कुतूब गोस और पीर ।
गरीबदास खालिक धनी हमरा नाम कबीर ।।
गरीब ऐ स्वामी संष्टा मैं सष्टि हमरे तीर ।
दास गरीब अधर बसू, अविगत सत कबीर ।।
इतना स्पष्ट करने पर भी उसे कवि या संत, भक्त या जुलाहा कहते हैं। परन्तु वह पूर्ण परमात्मा ही होता है। उसका वास्तविक नाम कविर्देव है। वह स्वयं सतपुरुष कबीर ही ऋषि या संत रूप में होता है । परन्तु तत्व ज्ञानहीन ऋषियों व संतों गुरूओं के अज्ञान सिद्धांत के आधार पर आधारित प्रजा उस समय अतिथि रूपमें प्रकट परमात्मा को नहीं पहचानते क्योंकि उन अज्ञानी ऋषियों, संतों व गुरूओं में परमात्मा को निराकार बताया होता है।
अनुवाद :- वेद बोलने वाला ब्रह्म कह रहा है कि (य) जो पूर्ण परमात्मा विलक्षण बच्चे के रूप में आकर (कवीनाम् ) प्रसिद्ध कवियों की (पदवी) उपाधि प्राप्त करके अर्थात् एक संत या ऋषि की भूमिका करता है उस (ऋषिक) संत रूप में प्रकट हुए प्रभु द्वारा रथी (सहस्राणीय) हजारों वाणी (ऋषिमना) संत स्वभाव वाले व्यक्तियों अर्थात् भक्तों के लिए (स्वर्षाः) स्वर्ग तुल्य आनन्द दायक होती हैं। (सोम) वह अमर पुरुष अर्थात् सतपुरुष (ततीया) तीसरे (धाम) मुक्ति लोक अर्थात् सत्यलोक की (महिषः) सुदढ़ पथ्वी को ( सिषा) स्थापित करके (अनु) पश्चात् (सन्तु) मानव सदश संत रूप में होता हुआ (स्ट्रप) गुबंद अर्थात् गुम्बज में उच्चे टिले रूपी सिंहासन पर विराजमनु राजति) उज्जवल स्थूल आकार में अर्थात् मानव सदश तेजोमय शरीर में विराजमान है।
भावार्थ- मंत्र 17 में कहा है कि कविर्देव शिशु रूप धारण कर लेता है। लीला करता हुआ बड़ा होता है। कविताओं द्वारा तत्वज्ञान वर्णन करने के कारण कवि की पदवी प्राप्त करता है अर्थात् उसे ऋषि, संत व कवि कहने लग जाते हैं, वास्तव में वह पूर्ण परमात्मा कविर् ही है। उसके द्वारा रची अमंतवाणी कबीर वाणी (कविर्वाणी) कही जाती है, जो भक्तों के लिए स्वर्ग तुल्य सुखदाई होती है। वही परमात्मा तीसरे मुक्ति धाम अर्थात् सत्यलोक की स्थापना करके एक गुबंद अर्थात् गुम्बज में सिंहासन पर तेजोमय मानव सदंश शरीर में आकार में विराजमान है।
इस मंत्र में तीसरा धाम सतलोक को कहा है। जैसे एक ब्रह्म का लोक जो इक्कीस ब्रह्मण्ड का क्षेत्र है, दूसरा परब्रह्म का लोक जो सात संख ब्रह्मण्ड का क्षेत्र है, तीसरा परम अक्षर ब्रह्म अर्थात् पूर्ण ब्रह्म का सतलोक है क्योंकि पूर्ण परमात्मा ने सत्यलोक में सत्यपुरूष रूप में विराजमान होकर नीचे के लोकों की रचना की है। इसलिए नीचे के लोकों की गणना की गई है।
यही आँखों देखा प्रमाण सन्त गरीब दास जी ने बताया है अर्स कुर्स पर सफेद गुम्बज है जहाँ सतगुरु का डेरा भावार्थ यह है कि ऊपर आसमान के ऊपरी छोर पर कबीर परमेश्वर जी एक सफेद गुबंद (गुम्बज) में रहते हैं।
अनुवाद :- (चमूस) पवित्र (गोविन्दु) कामधेनु रूपी सर्व मनोकामना पूर्ण करने वाला पूर्ण परमात्मा कविर्देव (विभत्वा) सर्व का पालन करने वाला है (श्येनः) सफेद रंग युक्त (शकुनः) शुभ लक्षण युक्त (चमूसत्) सर्वशक्तिमान है। (द्रप्सः) जैसे दूध से दही बनाने की विधि होती ऐसे शास्त्रानुकूल साधना से दही रूपी पूर्ण मुक्ति दाता (आयुधानि) तत्व ज्ञान रूपी काल जाल विनाशक धनुष युक्त सारंगपाणी प्रभु है । (सचमानः ) वास्तविक (बिभ्रत्) सर्व का पालन-पोषण करता है। (अपामूर्भिः) गहरे जल युक्त (समुद्रम्) सागर की तरह गहरा गम्भीर अर्थात् विशाल (तुरीयम्) चौथे (धाम) लोक अर्थात् अनामी लोक में (महिषः) उज्जवल सुदढ़ पथ्वी पर (विवक्ति) अलग स्थान पर भिन्न भी रहता है यह जानकारी कविर्देव स्वयं ही भिन्न-भिन्न करके विस्तार से देता है।
भावार्थ - मंत्र 18 में कहा है कि पूर्ण परमात्मा कविर्देव (कबीर परमेश्वर) तीसरे मुक्ति धाम अर्थात् सतलोक में एक गुम्बज में रहता है। इस मंत्र 19 में कहा है कि अत्यधिक सफेद रंग वाला पूर्ण प्रभु जो कामधेनु की तरह सर्व मनोकामना पूर्ण करने वाला है, वही वास्तव में सर्व का पालन कर्ता है। वही कविर्देव जो मंतलोक में शिशु रूप धारकर आता है वही जैसे दूध से दही बनाने की विधि होती है ऐसे पूर्ण मोक्ष प्राप्त करने की शास्त्रविधि अनुसार साधना बता कर पूर्ण मोक्ष रूपी दही प्रदान करने वाला है तत्वज्ञान रूपी शास्त्र अर्थात् धनुष युक्त होने से सारंगपाणी है तथा जैसे समुद्र सर्व जल का स्रोत है वैसे ही पूर्ण परमात्मा से सर्व की उत्पत्ति हुई है। गीता अध्याय 15 श्लोक 3 में कहा है कि संसार रूपी वक्ष को तत्त्वज्ञान रूपी शस्त्र द्वारा काटकर अर्थात् तत्त्वज्ञान द्वारा संशय समाप्त करके उस के पश्चात् उस परम पद परमेश्वर की खोज करनी चाहिए जहां जाने के पश्चात् साधक लौटकर कभी संसार में नहीं आते अर्थात् पूर्ण हो जाते हैं। जिस परमेश्वर से सर्व संसार रूपी वक्ष की प्रवति विस्तार को प्राप्त हुई है। वह पूर्ण प्रभु चौथे धाम अर्थात् अनामी लोक में रहता हैं, जैसे प्रथम सतलोक दूसरा अलख लोक, तीसरा अगम लोक, चौथा अनामी लोक है। इसलिए इस मंत्र 19 में स्पष्ट किया है कि कविर्देव (कबीर परमेश्वर) ही अनामी पुरुष रूप में चौथे धाम अर्थात् अनामी लोक में भी अन्य तेजोमय रूप धारण करके रहता है।
ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 96 मंत्र 20
मर्यो न शुभ्रस्तन्वं मंजानो• त्यो न सत्वा सनये धनानाम् ।
मर्यः न शुभ्रस्तन्वम् मं'जानः अत्यः न संत्वा सनये धनानाम् वर्षव यूथा परिकोशम् अर्षन् कनिक्रदत् चम्चो इरा विवेश
अनुवाद :- पूर्ण परमात्मा कविर्देव जो चौथे धाम अर्थात् अनामी लोक में तथा तीसरे धाम अर्थात् सत्यलोक में रहता है वही परमात्मा (न मर्यः) मनुष्य जैसा है परन्तु नाश रहित अर्थात् अमर (मंजन) निर्मल मुखमण्डल युक्त आकार में (अत्यः) बहुत (शुभ्रस्तन्वम्) विशाल श्वेत शरीर धारण करता हुआ ऊपर के लोकों में विद्यमान है तथा वहाँ से (सत्वा) गति करके अर्थात् चलकर जिसका किसी को पता नहीं चलता वही समरूप परमात्मा (इरा) पंथ्वी पर (विवेश) अन्य वेशभूषा अर्थात् भिन्न रूप (चम्वोः ) धारण करके आता है। सतलोक तथा पृथ्वी लोक पर लीला करता है (यथा) बहुत बड़े समुह को वास्तविक (सनये) सनातन पूजा की ( वषैव) वर्षा करके (न धनानाम् ) उन रामनाम की कमाई के निर्धनों को (कनिक्रदत्) मंद स्वर से अर्थात् स्वास-उस्वास से मन ही मन में उचारण करके पूजा करवाता है, जिससे असंख्य अनुयायियों का पूरा संघ (परि कोशम्) पूर्व वाले सुखसागर रूप अमंत खजाने अर्थात् सत्यलोक को (अर्षन्) पूजा करके प्राप्त करता है।
भावार्थ :- पूर्ण परमात्मा कविर्देव (कबीर परमेश्वर) ऊपर तीसरे धाम अर्थात् सत्यलोक में रहता है तथा वही परमेश्वर अन्य मनुष्य रूप धारण करके चौथे धाम अर्थात् अनामी लोक में रहता है। वही परमात्मा वैसा ही मनुष्य वाला समरूप सुन्दर मुखमण्डल युक्त श्वेत शरीर युक्त आकार में यहाँ पृथ्वी लोक पर भी आता है तथा अपनी वास्तविक पूजा विधि का ज्ञान करवा कर बहुत सारे समूह को अर्थात् पूरे संघ को सत्यभक्ति के धनी बनाता है, असंख्य अनुयायियों का पूरा संघ सत्य भक्ति की कमाई से पूर्व वाले सुखमय लोक पूर्ण मुक्ति के खजाने को अर्थात् सत्यलोक को साधना करके प्राप्त करता है
अथर्ववेद काण्ड नं. 4 अनुवाक न. 1 मन्त्र नं. 7 (संत रामपाल दास द्वारा भाषा भाष्य) :-
यो • थर्वाणं पित्तरं देवबन्धु बहस्पतिं नमसाव च गच्छात् ।
त्वं विश्वेषां जनिता यथासः कविर्देवो न दभायत् स्वधावान् । ।7।।
अनुवाद :- (यः) जो (अथर्वाणम्) अचल अर्थात् अविनाशी (पितरम्) जगत पिता (देवबन्धुम् ) भक्तों का वास्तविक साथी अर्थात् आत्मा का आधार (बहस्पतिम्) सबसे बड़ा स्वामी ज्ञान दाता जगतगुरु (च) तथा (नमसा) विनम्र पुजारी अर्थात् विधिवत् साधक को (अव) सुरक्षा के साथ (गच्छात्) जो सतलोक जा चुके हैं उनको सतलोक ले जाने वाला (विश्वेषाम् ) सर्व ब्रह्मण्डों को ( जनिता) रचने वाला ( न दभायत्) काल की तरह धोखा न देने वाले (स्वधावान् ) स्वभाव अर्थात् गुणों वाला (यथा) ज्यों का त्यों अर्थात् वैसा ही (सः) वह (त्वम्) आप (कविर्देवः कविर देव) कबीर परमेश्वर अर्थात् कविर्देव है।
भावार्थ :- जिस परमेश्वर के विषय में कहा जाता है त्वमेव माता च पिता त्वमेव त्वमेव बन्धु च सखा त्वमेव त्वमेव विद्या च द्रविणम् त्वमेव सर्वम् मम देव देव ।। वह जो अविनाशी सर्व का माता पिता तथा भाई व सखा व जगत गुरु रूप में सर्व को सत्य भक्ति प्रदान करके सतलोक ले जाने वाला, काल की तरह धोखा न देने वाला, सर्व ब्रह्मण्डों की रचना करने वाला कविर्देव (कबीर परमेश्वर) है।
Social Plugin