श्रीमद भगवद गीता अध्याय 15 श्लोक 17

श्रीमद भगवद गीता अध्याय 15 श्लोक 17 में प्रमाण है की 

गीता ज्ञान दाता के अनुसार पूर्ण परमात्मा तो कोई और है 

Geeta Chapter 15 Verse 17


उत्तम: पुरुषस्त्वन्य: परमात्मेतुदाहृत: |

यो लोकत्रयमाविष्य बिभर्त्यव्यै ईश्वर: || 17||


भावार्थ : उत्तम प्रभु तो उपरोक्त दोनों प्रभुओं "क्षर पुरुष तथा अक्षर पुरुष" से भी अन्य ही है । यह वास्तव में परमात्मा कहा गया है जो तीनों लोकों में प्रवेश करके सबका धारण पोषण करता है एवं अविनाशी ईश्वर ( प्रभुओं में श्रेष्ठ अर्थात् समर्थ प्रभु है)

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अन्य प्रमाण देखिए :-

❏  सबके  पालनहार कबीर परमेश्वर का ही सुमिरन करना चाहिए -  देखे प्रमाण 
❏  गीता में प्रमाण है की पूर्ण परमेश्वर कि शरण में जाने हेतु - देखे प्रमाण 
❏  गीता जी में तत्वदर्शी संत कि शरण में जाने के निर्देश  - देखे प्रमाण 
❏  गीता जी में संसार रुपी वृक्ष का वर्णन - देखे प्रमाण 
❏  गीता जी के अनुसार व्रत करना मना है - देखे प्रमाण
❏  गीता ज्ञान दाता ने अपनी साधना को अनुत्तम ( घटिया ) बताया है - देखे प्रमाण 
❏ गीता ज्ञान दाता कृष्ण नही कोई और था - देखे प्रमाण
❏  गीता जी के अनुसार शास्त्र अनुकुल साधना ही करनी चाहिए - देखे प्रमाण
❏  गीता ज्ञान दाता ने अपनी साधना को अनुत्तम ( घटिया ) बताया है - देखे प्रमाण
❏  गीता जी मे पूर्ण परमेश्वर कि शरण में जाने का संकेत - देखे प्रमाण
❏  एकमात्र पूर्ण परमेश्वर कि शरण में जाने हेतु गीता जी में निर्देश - देखे प्रमाण
❏   गीता जी मे पूर्ण संत के द्वारा तीन बार में नाम दीक्षा देने का आदेश है - देखे प्रमाण
❏  गीता जी में तीनों देवों की पूजा को व्यर्थ बताया गया है - देखे प्रमाण
❏  ब्रह्मलोक तक सभी लोक नाशवान हैं - देखे प्रमाण
❏  ज्ञान देने वाला भगवान भी जन्म मृत्यु में है अर्थात अविनाशी नहीं है। - देखे प्रमाण