अपने धर्म की धार्मिक क्रियाओं तथा परमात्मा से संबन्धित पूजा पद्यति के प्रति गहरी आस्था को धार्मिक भावना कहते धाम्रिक भावनाओं को आहत करना: किसी के धम्र में चल रही पूजाओं लिए उनके परमातमा के पर बिना आचार के कआक्ष या आलोचना करना चाम्रिक भावनाओं को ड्रेस पहुँचाना हैं। तर्क-वितर्क:- किसी विषय पर अपनी-अपनी राय देना, अन्य की राय का खंडन करना व अपनी का मंडन करना, अन्य द्वारा अपने सिद्धांत का समर्थन करना, उसके विचारों को गलत बताना, यह तर्क-वितर्क है। इसमें किसी ग्रन्थ को आधार माना जाए। समाधान है, अन्यथा झूठा झगड़ा है। लेखक का उद्देश्य किसी की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुँचाना नहीं है, परंतु शास्त्रों को आधार मानकर तर्क-वितर्क किया है। सर्व शास्त्रों के प्रमाण को आधार रूप में देकर यथार्थ आध्यात्मिक ज्ञान तथा मोक्ष मार्ग को उद्धृत (उजागर किया है। यदि इसे धार्मिक भावनाओं का आहत होना माना तो दुर्भाग्य की बात है मेरा (लेखक का) उद्देश्य है कि विश्व के मानव को परमात्मा की खोज में इधर-उधर भटकने से बचाकर प्रमाणित तथा लाभदायक शास्त्रोक्त अध्यात्म ज्ञान व साचना बताऊँ। उनके मानव जीवन की रक्षा करूँ । यदि यह धार्मिक भावनाओं को आहत महसूस होगा तो कोई बात नहीं, फिर तो यह करना आवश्यक है। उदाहरण:- एक समय एक लड़के ने कुछ बच्चों को पार्क में एक लकड़ी के खंभे पर चढ़ते-उतरते खेलते देखा। उसने गली में खड़े बिजली के खंभे पर चढ़ना प्रारम्भ किया। एक सज्जन पुरुष ने उसे देखा और दौड़कर उसे ऐसा करने से रोका। बच्चा रोने लगा। माता-पिता को बताया कि एक व्यक्ति ने मुझे खेलने से रोका। वह व्यक्ति उसी गली में रहता था। माता-पिता उस बच्चे को लेकर उस व्यक्ति के पास गए और कारण जाना तो पता चला कि उस व्यक्ति ने तो बच्चे के जीवन की रक्षा की है। बच्चे के माता पिता गए तो थे झगड़ा करने के उद्देश्य से, परंतु उस व्यक्ति के उपकार का धन्यवाद करके आए। मेरा (लेखक का) यही उद्देश्य है कि हिन्दू धर्म के सब व्यक्ति लकड़ी खम्बों पर न खेलकर (शास्त्रोक्त साधना न करके) बिजली के खंभों पर चढ़कर मर रहे हैं यानि शास्त्राविरुद्ध मनमाना आचरण करके अनमोल मानव जीवन व्यर्थ कर रहे हैं, उनको शास्त्रोक्त साधना करने के लिए बाध्य करूँ क्योंकि आप मेरे बन्धु हैं। मेरे देश के वासी हैं। परमात्मा के अबोध (अध्यात्म ज्ञान में अनजान) बच्चे हैं। मुझे परमात्मा जी ने सर्व शास्त्रों का यथार्थ ज्ञान दिया है। वर्तमान में सब शिक्षित है। शास्त्रों के अध्याय, श्लोक व पृष्ठ तक पुस्तक में लिखे हैं, फोटोकॉपी भी लगाई हैं जाँच करें, फिर मानें।
इस पुस्तक "कबीर बड़ा या कृष्ण" के लिखने का उद्देश्य है कि आप और मैं हिन्दू धर्म में जन्में हैं। पहले यह दास (रामपाल दास) भी आप वाली साधना लोकवेद वाली ही किया करता था। परमात्मा की कृपा से एक तत्वदर्शी संत मिल गए। उन्होंने शास्त्रों से प्रमाण बताकर मेरी शास्त्र विरुद्ध साधना (जो वर्तमान में हिन्दू धर्म में प्रचलित है) को छुड़वाकर शास्त्रों में लिखी सत्य साधना का उपदेश देकर मेरे मानव जीवन को नष्ट होने से बचाया। उस महापुरूष यानि मेरे पूज्य गुरूदेव स्वामी रामदेवानंद जी महाराज की मेरी एक सौ एक पीढ़ी अहसानमंद रहेंगी।
कबीर परमेश्वर जी ने सूक्ष्मवेद में कहा है कि:
कबीर, पीछे लागा जाऊँ था, लोक वेद के साथ मार्ग में सतगुरू मिले, दीपक दीन्हा हाथ ।।
सूक्ष्मवेद में कहा है कि- "सत्य भक्ति करे जो हंसा, तारू तास के इकोतर बंशा । "
शब्दार्थ:- परमात्मा जी ने कहा है कि जो साधक शास्त्रोक्त सत्य साधना भक्ति करता है तो मैं उसकी एक सौ एक (101) पीढ़ी को संसार सागर से पार कर दूंगा यानि पूरे वंश का मोक्ष प्रदान कर दूँगा।
प्रिय पाठको मेरी (लेखक की) तो एकोतर पीढ़ी निःसंदेह पार होंगी। मेरे को दीक्षा देने का अधिकार मेरे पूज्य गुरूदेव स्वामी रामदेवानंद जी ने दिया है जो भक्त / भक्तमति मेरे से दीक्षा लेकर शास्त्र विरुद्ध पुरानी साधना त्यागकर शास्त्रोक्त साधना अपनी आँखों से शास्त्रों में देखकर विश्वास के साथ आजीवन करेगा, वह तथा उसकी इकोतर (101) पीढ़ियाँ भवसागर से पार हो जाऐंगी।
कृप्या विश्वास के लिए पढ़ें इसी पुस्तक के पृष्ठ 445 पर "परमात्मा कबीर जी की भक्ति से हुए भक्तों को लाभ" अध्याय में।
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