कावड़ यात्रा क्या है और इससे क्या लाभ है




नमस्कार, आज के इस लेख में हम चर्चा करने जा रहे हैं हिंदू धर्म में प्रचलित कावड़ यात्रा की यह यात्रा सावन के महीने में की जाती है कांवड़ यात्रा भगवान शिव के भक्तों द्वारा हर साल की जाने वाली एक शुभ और पवित्र यात्रा है. इस यात्रा को जल यात्रा भी कहा जाता है, इस यात्रा को धार्मिक दृष्टि से बेहद पुण्यकारी और लाभकारी माना गया है, मान्यता है कि इस पावन यात्रा को करने से भक्तों की हर मनोकामना पूरी हो जाती है और शुभ फलों की प्राप्ति होती है,

तो चलिए इस विषय चर्चा करते है की कावड़ यात्रा क्या है 

कांवड़ यात्रा: हर साल श्रावण मास में लाखों की तादाद में कांवडिये सुदूर स्थानों से आकर गंगा जल से भरी कांवड़ लेकर पदयात्रा करके अपने गांव वापस लौटते हैं इस यात्राको कांवड़ यात्रा बोला जाता है। ऐसे ही बाबा भोले के एक भक्त आशीष उपाध्याय ने 22 जुलाई 2016 को हरिद्वार से जल लेकर बाबा विश्वनाथ वाराणसी में 18 दिनों के पैदल यात्रा के पश्चात लगभग 1032 किलोमीटर यात्रा संपन्न कर भगवान भोलेनाथ का जलाभिषेक किया यह आज तक की सबसे लंबी कांवड़ यात्रा में शामिल है श्रावण की चतुर्दशी के दिन उस गंगा जल से अपने निवास के आसपास शिव मंदिरों में शिव का अभिषेक किया जाता है। कहने को तो ये धार्मिक आयोजन भर है, लेकिन इसके सामाजिक सरोकार भी हैं। कांवड के माध्यम से जल की यात्रा का यह पर्व सृष्टि रूपी शिव की आराधना के लिए हैं। पानी आम आदमी के साथ साथ पेड पौधों, पशु - पक्षियों, धरती में निवास करने वाले हजारो लाखों तरह के कीडे-मकोडों और समूचे पर्यावरण के लिए बेहद आवश्यक वस्तु है। उत्तर भारत की भौगोलिक स्थिति को देखें तो यहां के मैदानी इलाकों में मानव जीवन नदियों पर ही आश्रित है 

कावड़ यात्रा कब शुरू हुए 


हिंदू पुराणों में कांवड़ यात्रा का संबंध दूध के सागर के मंथन से है। जब अमृत से पहले विष निकला और दुनिया उसकी गर्मी से जलने लगी, तो शिव ने विष को अपने अंदर ले लिया। लेकिन, इसे अंदर लेने के बाद वे विष की नकारात्मक ऊर्जा से पीड़ित होने लगे। त्रेता युग में, शिव के भक्त रावण ने कांवड़ का उपयोग करके गंगा का पवित्र जल लाया और इसे पुरामहादेव में शिव के मंदिर पर डाला। इस प्रकार शिव को विष की नकारात्मक ऊर्जा से मुक्ति मिली।

कावड़ यात्रा के विषय में शास्त्र क्या कहते है


पवित्र गीता अध्याय 16 श्लोक 23 के अनुसार शास्त्र विरुद्ध साधना से कोई लाभ नहीं होता। इसलिए कांवड़ यात्रा, एक शास्त्र विरुद्ध साधना है, गंगा तो शिव के लोक में बने जटा कुंडली डैम में है। उसे यहाँ से ले जाने की जरूरत नहीं है। रही बात कांवड़ यात्रा की तो सावन में सबसे ज्यादा जीव उत्पन्न होते हैं जिस वजह से कांवड़ के लाने में सबसे ज्यादा जीव मरते हैं। जिसका पाप कांवड़ यात्रियों को लगता है। शिव जी के लोक में बने जटा कुंडली डैम में गंगा शुद्ध है उसे इधर लेने आने की आवश्यकता नहीं है। रही बात कांवड़ की तो आन उपसना से शिव जी प्रसन्न नहीं हो सकते। क्योंकि सावन में सबसे ज्यादा जीव उत्पन्न होते हैं जिससे कांवड़ के लाने में सबसे ज्यादा जीव मरते हैं और इसका पाप कांवड़ियों को लगता है।

इस विषय में सूक्ष्मवेद में परमात्मा ने बताया है:


जा तीर्थ पर कर है दानं। ता पर जीव मरत है अरबानं ।। गोते-गोते पड़ि है भारं। गंगा जमना गए केदारं ।।

संदर्भ :


कावड़ यात्रा से लाभ तो कोई नहीं बल्कि पाप अधिक है और कांवड़ यात्रा, एक शास्त्र विरुद्ध साधना है और गीता अध्याय 16 श्लोक 23 के अनुसार शास्त्र विरुद्ध साधना से कोई लाभ नहीं होता। बल्कि कांवड़ यात्रा के दौरान आने जाने में पैरों तले जीव मरते हैं जिसका पाप लगता है।