गोवर्धन पूजा क्यों मनाई जाती है

गोवर्धन पूजा क्यों मनाई जाती है 



दिवाली के अगले दिन मनाए जाना वाला गोवर्धन पूजा का त्योहार हिन्दू धर्म का एक प्रमुख त्योहार है जो प्रति वर्ष कार्तिक माह की एकम को मनाया जाता है जिसे अन्नकूट के नाम से भी जाना जाता है और इस दिन हिन्दू धर्म के श्राद्धहलुओ द्वारा गोवर्धन पर्वत और भगवान श्री कृष्ण की पूजा की जाती है 

गोवर्धन पूजा से जुड़ी धार्मिक मान्यताए है की ब्रजवाशी याने की श्री कृष्ण जी के कुल के व्यक्ति देवी देवताओ की पूजा किया करते थे, एक दिन श्री कृष्ण ने उनसे कहा की हम देवी देवताओं की पूजा नहीं करेंगे और न ही देवताओ के राज्य इन्द्र की पूजा करेंगे बल्कि हम परमात्मा की पूजा करेंगे यानि की श्री कृष्ण ने देवताओ के राजा इन्द्र की भी पूजा बंद कर दी और इस कथन से क्रोधित होकर इन्द्र जी ने प्रतिशोद लेने के लिए ब्रज नगरी को डुबोने के उदेश्य से मूसलाधार बारिश करना सुरू कर दी और तब श्री कृष्ण जी ने गोवर्धन पर्वत को एक हाथ की उंगली पर रख लिया तथा उसको पूरी ब्रज नगरी के ऊपर फैला दिया सब ब्रजवासियों से कहा सभी अपने पशुओ सहित इस पर्वत के नीचे या जो वर्षा का सारा पानी गिरिराज पर्वत ने सोख लिया जिससे इन्द्र की हार हुई और ब्रजवासियों ने देवी देवताओ की पूजा बंद कर दी और श्री कृष्ण ने उस गोवर्धन पर्वत को पुनः यथा स्थान पर रख दिया और इसी घटना की याद मे हिन्दू धर्म के श्रद्धालुओ द्वारा गोवर्धन पूजा और गोवर्धन परिक्रमा की जाती है 

लेकिन विचार करने वाली बात है की श्री कृष्ण जे ने तो देवी देवताओ की पूजा बंद कारवाई थी और हिन्दू समाज गोवर्धन पर्वत याने की गिरिराज पर्वत की परिक्रमा करना है तथा गोवर्धन पूजा करते है और देवी देवताओ की भी पूजा करते है, इससे तो भगवान विष्णु की आज्ञा की अवेलना हुई जिससे  श्री कृष्ण जी शक्त नाराज होंगे, तो वही हमारे पवित्र धर्म ग्रंथ चारों वेद, श्रीमदभगतगीता मे एक पूर्ण परमात्मा की भक्ति करने के लिए कहा गया है जिससे देवी देवताओ की भक्ति करना शास्त्रविरुद्ध मनमाना आचरण है जिससे 

पवित्र गीता अध्याय 16 श्लोक 23 के अनुसार 

जो व्यक्ति शास्त्रविधि को त्याग कर मनमाना आचरण करता है, उसको न ही सिद्धि प्राप्त होती है और न उसकी हाती होती है, न उसको सुख मिलता है । 

अर्थात गोवर्धन पूजा हो या गोवर्धन परिक्रमा शास्त्रोक्त साधना न होने के कारण इससे लाभ नहीं मिलता बल्कि गोवर्धन परिक्रमा के व्यक्त पैरों के नीचे आशंख जीव जन्तु व कीड़े मकोड़े मरते है और वह पाप लगता है याने की उनका पाप भाग्य मे लिखा जाता है क्योंकि 

पवित्र गीता अध्याय 8 श्लोक 16 के अनुसार 

ब्रह्मलोक तक जीतने ही लोक है तथा इनमे निवास करने वाले देवी देवता ब्रह्मा, विष्णु, शिव, दुर्गा, गणेश और ब्रह्म सभी नाशवान है जिसका प्रमाण


संक्षिप्त श्रीमद्देवीभागवत गीताप्रेस गोरखपुर से प्रकाशित के तीसरे स्कन्ध अध्याय 4-5

में श्री विष्णु उर्फ श्रीकृष्ण जी ने अपनी माता दुर्गा की स्तुति करते हुए कहा है कि हे माता!आप शुद्ध स्वरूपा हो, मैं (विष्णु), ब्रह्मा और शंकर तो आपकी कृपा से विद्यमान हैं, हमारा तो अविर्भाव (जन्म) तथा तिरोभाव (मृत्यु) हुआ करता है, हम अविनाशी नहीं हैं।

तो वही हम सभी जानते है श्री विष्णु जी द्वापरयुग मे मत देवकी के गर्भ से श्री कृष्ण रूप मे जन्मे थे और अंत मे एक सीकरी के विषाक्त तीर के लगने से कृष्ण जी की मौत हो गई थी और यदि गोवर्धन पर्वत उठाने मात्र से ही श्री कृष्ण जी को हम पूर्ण परमात्मा मानते है तो इस विषय मे 

कबीर परमेश्वर जी ने कहा है -

कबीर, गोवर्धन श्री कृष्ण ने धारो, द्रोणागिरी हनुमंत । 
शेषनाग सब सृष्टि उठाओ, इनको कौन भगवंत ।।

अर्थात श्री कृष्ण जी को आप इस किए परमात्मा मानते हो की उन्होंने गोवर्धन पर्वत उठा लिया था, हनुमान जी द्रोणागिरी पर्वत को उठाया था तथा आप लोक वेफ़ के आधार से कहते हो शेषनाग सारी सृष्टि को उठाए हुए है तो इनमे कौन परमात्मा हुआ 

अर्थात इन प्रमाणों मात्र से श्री विष्णु जी उर्फ श्री कृष्ण जी को परमात्मा नहीं माना जा सकता बल्कि सद्ग्रंथों व परमात्मा की आखों देखी संतों की अमृत वाणियों से पता करना चाहिए की पूर्ण परमात्मा कौन है 

पवित्र यजुर्वेद अध्याय 40 मंत्र 8 मे कहा गया है की 

स पर्य् अगाच् छुक्रम् अकायम् अव्रणम् अस्नाविरम् शुद्धम् अपापविद्धम् ।
 कविर् मनीषी परिभूः स्वयंभूर् याथातथ्यतो ऽर्थान् व्यदधाच्छाश्वतीभ्यः समाभ्यः ॥

अर्थात पवित्र यजुर्वेद अध्याय 40 मंत्र 8 में कहा है कि (कविर मनिषी) जिस परमेश्वर की सर्व प्राणियों को चाह है, वह कविर अर्थात कबीर परमेश्वर पूर्ण विद्वान है। उसका शरीर बिना नाड़ी (अस्नाविरम) का है, (शुक्रम अकायम) वीर्य से बनी पांच तत्व  से बनी भौतिक काया रहित है। वह सर्व का मालिक सर्वोपरि सत्यलोक में विराजमान है। उस परमेश्वर का तेजपुंज का (स्वर्ज्योति) स्वयं प्रकाशित शरीर है। जो शब्द रूप अर्थात अविनाशी है। वही कविर्देव (कबीर परमेश्वर) है जो सर्व ब्रह्मण्डों की रचना करने वाला (व्यदधाता) सर्व ब्रह्मण्डों का रचनहार (स्वयम्भूः) स्वयं प्रकट होने वाला (यथा तथ्यः अर्थान्) वास्तव में (शाश्वतिभः) अविनाशी है जिसके विषय में वेद वाणी द्वारा भी जाना जाता है कि परमात्मा साकार है तथा उसका नाम कविर्देव अर्थात् कबीर प्रभु है (गीता अध्याय 15 श्लोक 17 में भी प्रमाण है।) भावार्थ है कि पूर्ण ब्रह्म का नाम कबीर (कविर देव) है तथा उस परमेश्वर का शरीर नूर तत्व से बना है।

ऋग्वेद मण्डल 1 सुक्त 1 मंत्र 5

अग्निः होता कविः क्रतुः सत्यः चित्रश्रवस्तम् देवः देवेभिः आगमत् ।।।।

भावार्थ : - सर्व सृष्टी रचनहार कुल का मालिक कविर्देव अर्थात् कबीर जो तेजोमय शरीर युक्त है । जो साधकों के लिए पूजा करने योग्य है । जिसकी प्राप्ति तत्वदर्शी संत के द्वारा बताए वास्तविक भक्ति मार्ग से देवस्वरूप ( विकार रहित ) भक्त को होती है ।

तथा परमात्मा की आखों देखी गवाही संत गरीब दास जी महाराज जी ने कुछ इस प्रकार काही है 

गरीब, अनन्त कोटि ब्रह्मण्ड का एक रति नहीं भार।
 सतगुरु पुरुष कबीर हैं कुल के सृजन हार ।।

हम सुल्तानी नानक तारे, दादू कूं उपदेश दिया। 
जात जुलाहा भेद नहीं पाया, काशी माहे कबीर हुआ ।।

गरीब, अनंत कोटि ब्रह्मांड में, बंदी छोड़ कहाय। 
सो तो एक कबीर हैं, जननी जन्या न माय।।

 

श्री गुरुग्रन्थ साहेब के पृष्ठ नं. 721, राग तिलंग महला 1 में कहा है

यक अर्ज गुफतम् पेश तो दर कून करतार। 

हक्का कबीर करीम तू बेअब परवरदिगार।।


इससे  सिद्ध है की गोवर्धन पूजा या श्री कृष्ण की पूजा करना शास्त्रविरुद्ध मनमाना आचरण है जिससे साधक को लाभ नहीं हो सकता बल्कि हमे वेदों और आखों देखे संतों के अनुसार (कविर्देव) याने की कबीर परमात्मा की भक्ति करनी चाहिए और आज पूरे विश्व मे संत रामपाल जी महाराज जी ही जो वेद, गीता, पुराण समेत सर्व धर्म ग्रंथों आखों देखे संतों की अमृत वाणियों के आधार पर सत्य भक्ति व सत्य आध्यात्मिक ज्ञान बताते है जिससे सनातन धर्म का पुनर उद्यान हो रहा है और कबीर परमात्मा की शस्त्र अनुकूल भक्ति भी उन्ही के पास है जिससे साधक को जगतगुरु तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज द्वारा बताई गई भक्ति से कबीर परमेश्वर से मिलने वाले लाभ प्राप्त होते है 

अतः आप सभी से निवेदन है की संत रामपाल जी महाराज जी के सत्य आध्यात्मिक ज्ञान को जानने के लिए उनके द्वारा लिखित हिन्दू साहेबमान नहीं समझे गीता, वेद, पुराण को अवश्य पढ़े 

और अपने मानव जीवन का मुल उद्देश्य पूर्ण मोक्ष प्राप्ति का सतमार्ग प्राप्त करे और अपना आत्मकल्याण करवाए॥