तीनों गुण क्या हैं ? प्रमाण सहित


"तीनों गुण क्या हैं ? प्रमाण सहित"

"तीनों गुण रजगुण ब्रह्मा जी, सतगुण विष्णु जी, तमगुण शिव जी हैं। ब्रह्म काल) तथा प्रकति (दुर्गा) से उत्पन्न हुए हैं तथा तीनों नाशवान हैं"
       प्रमाण : गीताप्रेस गोरखपुर से प्रकाशित श्री शिव महापुराण जिसके सम्पादक हैं श्री हनुमान प्रसाद पोद्दार पष्ठ सं. 110 अध्याय 9 रूद्र संहिता "इस प्रकार ब्रह्मा-विष्णु तथा शिव तीनों देवताओं में गुण हैं, परन्तु शिव (ब्रह्म-काल) गुणातीत कहा गया है।

       दूसरा प्रमाण : गीताप्रेस गोरखपुर से प्रकाशित श्रीमद् देवीभागवत पुराण जिसके सम्पादक हैं श्री हनुमान प्रसाद पौद्दार चिमन लाल गोस्वामी, तीसरा स्कंद, अध्याय 5 पंष्ठ 123 : भगवान विष्णु ने दुर्गा की स्तुति की कहा कि मैं (विष्णु), ब्रह्मा तथा शंकर तुम्हारी कपा से विद्यमान हैं। हमारा तो आविर्भाव (जन्म) तथा तिरोभाव (मत्यु) होती है। हम नित्य (अविनाशी) नहीं हैं। तुम ही नित्य हो, जगत् जननी हो, प्रकति और सनातनी देवी हो। भगवान शंकर ने कहा यदि भगवान ब्रह्मा तथा भगवान विष्णु तुम्हीं से उत्पन्न हुए हैं तो उनके बाद उत्पन्न होने वाला मैं तमोगुणी लीला करने वाला शंकर क्या तुम्हारी संतान नहीं हुआ अर्थात् मुझे भी उत्पन्न करने वाली तुम ही हों। इस संसार की संष्टि-स्थिति-संहार में तुम्हारे गुण सदा सर्वदा हैं। इन्हीं तीनों गुणों से उत्पन्न हम, ब्रह्मा-विष्णु तथा शंकर नियमानुसार कार्य में तत्त्पर रहते हैं।

उपरोक्त यह विवरण केवल हिन्दी में अनुवादित श्री देवीमहापुराण से है, जिसमें कुछ तथ्यों को छुपाया गया है। इसलिए यही प्रमाण देखें श्री मद्देवीभागवत महापुराण सभाषटिकम् समहात्यम्, खेमराज श्री कष्ण दास प्रकाशन मुम्बई, इसमें संस्कत सहित हिन्दी अनुवाद किया है। तीसरा स्कंद अध्याय 4 पष्ठ 10, श्लोक 42 :-

ब्रह्मा - अहम् महेश्वरः फिल ते प्रभावात्सर्वे वयं जनि युता न यदा तू नित्याः, के अन्ये सुराः शतमख प्रमुखाः च नित्या नित्या त्वमेव जननी प्रकतिः पुराणा (42)
       हिन्दी अनुवाद :- (विष्णु जी ने कहा) हे मात! ब्रह्मा, मैं तथा शिव तुम्हारे ही प्रभाव से जन्मवान हैं, नित्य नही हैं अर्थात् हम अविनाशी नहीं हैं, फिर अन्य इन्द्रादि दूसरे देवता किस प्रकार नित्य हो सकते हैं। तुम ही अविनाशी हो, हम सर्व की जननी अर्थात् उत्पन्न करने वाली माता हो, प्रकति तथा सनातनी देवी हो । (42)

पंष्ठ 11-12, अध्याय 5, श्लोक 8 :- यदि दयार्द्रमना न सदा बिके कथमहं विहितः च तमोगुणः कमलजश्च रजोगुणसंभवः सुविहितः किमु सत्वगुणों हरिः । (8)
       अनुवाद :- भगवान शंकर बोले :- हे मात! यदि हमारे ऊपर आप दयायुक्त हो तो मुझे तमोगुण क्यों बनाया, कमल से उत्पन्न ब्रह्मा को रजोगुण किस लिए बनाया तथा विष्णु को सतगुण क्यों बनाया? अर्थात् जीवों के जन्म-मंत्यु रूपी दुष्कर्म में क्यों लगाया?

श्लोक 12 :- रमयसे स्वपतिं पुरुष सदा तव गतिं न हि विद्द्म वयं शिवे (12) 
       हिन्दी - अपने पति पुरुष अर्थात् काल भगवान के साथ सदा भोग-विलास करती रहती हो। आपकी गति कोई नहीं जानता।
       
तीसरा स्कंद पंष्ठ 14, अध्याय 5 श्लोक 43: एकमेवा द्वितीय यत् ब्रह्म वेदा वदंति वै। सा किं त्वम् वा प्यसौ वा कि संदेहं विनिवर्तय (43)
       अनुवाद :- जो कि वेदों में अद्वितीय केवल एक पूर्ण ब्रह्म कहा है क्या वह आप ही हैं या कोई और है? मेरी इस शंका का निवारण करें। ब्रह्मा जी की प्रार्थना पर देवी ने कहा-

देव्युवाच सदैकत्वं न भेदो स्ति सर्वदैव ममास्य च।। यो सौ सा हमह यो सौ भेदो स्ति मतिविभ्रमात् ।।2।। 
आवयोरंतर सूक्ष्मं यो वेद मतिमान्हि सः।। विमुक्तः स तू संसारान्मुच्यते नात्र संशयः ।।३।।
       अनुवाद - देवी ने कहा: यह है सो मैं हूँ, जो मैं हूँ सो यह है, मति के विभ्रम होनेसे भेद भासता है।।2।। हम दोनों का जो सूक्ष्म अन्तर है इसको जो जानता है वही मतिमान अर्थात् तत्वदर्शी है, वह संसार से पंथक् होकर मुक्त होता है, इसमें संदेह नहीं।।३।।

सुमरणाद्दर्शनं तुभ्यं दास्ये हं विषमे स्थिते ।। स्वर्तव्या हं सदा देवाः परमात्मा सनातनः ||80 || 
उभयोः सुमरणादेव कार्यसिद्धिर संशयम्।। ब्रह्मोवाच ।। इत्युक्त्वा विससर्जास्मान्द त्त्वा शक्तीः सुसंस्कतान् ।।81 ।।
विष्णवे थ महालक्ष्मी महाकाली शिवाय च।। महासरस्वतीं मह्य स्थानात्तस्माद्विसर्जिताः । ।82 ।।
       अनुवाद - संकट उपस्थित होने पर सुमरण से ही मैं तुमको दर्शन दूंगी, देवताओं ! परमात्मा सनातन देवकी शक्तिरूपसे मेरा सदा सुमरण करना ।।80।। दोनों के सुमरण से अवश्य कार्यसिद्धि होगी, ब्रह्माजी बोले इस प्रकार संस्कार कर शक्ति देकर हमको विदा किया। 181।। विष्णु के निमित्त महालक्ष्मी, शिव के निमित्त महाकाली, और हमको महासरस्वती देकर विदा किया। 182।

मम चैव शरीर वै सूत्रमित्याभिधीयते ।। स्थूल शरीर वक्ष्यामि ब्रह्मणः परमात्मनः । ।83 ।। 
       अनुवाद - मेरा शरीर सूत्ररूप कहा जाता है, परमात्मा ब्रह्म का स्थूलशरीर कहाता है। 183।।

"उपरोक्त पुराण वाक्यों का सार"

स्पष्ट हुआ कि श्री ब्रह्मा जी रजगुण है, श्री विष्णु जी सतगुण है तथा श्री शिव जी तमगुण है। तीनों प्रभु नाशवान हैं तथा इनका जन्म-मत्यु होता है। दुर्गा को प्रकति भी कहा जाता है। दुर्गा का पति ब्रह्म (क्षर पुरुष/काल) है। यह उसके साथ पति-पत्नी व्यवहार (रमण/विलास) करती रहती है। दुर्गा तथा ब्रह्म दोनों स्थूल शरीर में आकार में हैं।

यही प्रमाण गीता अध्याय 14 श्लोक 3 से 5 में है। गीता ज्ञान दाता ब्रह्म (क्षर पुरुष/काल) कह रहा है कि प्रकति (दुर्गा) तो मेरी पत्नी है। मैं इसकी योनी (गर्भाधान स्थान) में बीज स्थापना करता हूँ, जिससे सर्व प्राणियों की उत्पत्ति होती है। मैं सर्व (इक्कीस ब्रह्मण्ड के प्राणियों) का पिता हूँ तथा प्रकति (दुर्गा/अष्टांगी) सर्व की माता है। इसी दुर्गा (प्रकति/अष्टांगी) से उत्पन्न तीनों गुण (रजगुण ब्रह्मा, सतगुण विष्णु तथा तमगुण शिव) अन्य प्राणियों को कर्मों के बंधन में बांधते हैं।


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